पुकारती है हिन्दी #thursdaypoetrychallenge

हिंद देश में ही लगे हिंदी क्यों है भार
मातृभाषा हूँ तुम्हारी थोड़ा तो सम्मान दो
सीख लो अंग्रेजी मगर हिंदी को भी मान दो
तुमने क्यों दिया है नजर से मुझे उतार?
हिंद की बेटी हूँ मैं ये बात सही है
बेटियों सी दुर्दशा मेरी भी हुई है
बेटियों की तरह मुझे भी दिया दुत्कार
इस तरह दिखावे में जीना नहीं अच्छा
अपनी ही भाषा में तुम्हारा ज्ञान है कच्चा
कैसे करोगे मातृभाषा का कोई उद्धार?
सिसकती हूँ मैं तुम्हें सुनाई नहीं दे
आँसू मेरी आँखों के दिखाई नहीं दें
दम तोड़ ही न दूँ कहीं मुझे न देना मार
देने को नई जिंदगी थोड़ा जतन तो करो
अपनी हूँ तुम्हारी मैं पराया मत करो
नई साँसें मुझमें भर दो मुझसे भी करो प्यार
हूँ तो तुम्हारी अपनी यूँ पराया न करो
भरने को फिर से साँसें थोड़ा जतन भी करो
घुट घुट के न मर जाऊँ कहीं जाऊँ न मैं हार
राष्ट्रभाषा का दर्जा वैसे मेरे पास है
थोड़ा गौरव भी मिले मेरी यही आस है
पुकारती हूँ मैं तुम्हें सुन लो मेरी पुकार
अर्चना सक्सेना
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