पलायन

चार साल का मासूम राजु बहुत दिनों से घर पर था , मां स्कूल नहीं भेज रही थी , ना ही खुद काम पर जा रही है ।बाबा भी सारा दिन घर पर ही रहते हैं और जब भी पूछता कि सब घर पर ही बैठे हैं , मां कहती थी स्कूल जाएगा , नई ड्रेस होगी , नई किताबें-कापियां, और मां कहती थी स्कूल में खिचड़ी - दलिया भी मिलेगा , मुझे बड़ा अच्छा लगता है , पर मां स्कूल भेजती ही नहीं ना ही घर पर बना के देती है, कहती है थोड़ा - थोड़ा खाओ , कल के लिए भी रखना है ।
आज तो और भी अजीब लग रहा है सारे घर का सामान बांध रहे हैं दोनों , ले दे कर सामान में दो बिस्तर और दो - चार जोड़ी कपड़े और आठ- दस बर्तन ही तो हैं । मां ये क्या हो रहा है ??? जिज्ञासा है मासूम की आंखों में ।
गुस्से में ---- पूछ अपने बापू से , गांव जाने की ज़िद्द पकड़े है , भला छोटा सा टुकड़ा ज़मीन का , वो भी बंजर , क्या बोएंगे और क्या खाएंगे
अरी कह रहा हूं ना मेहनत करेंगे तो इश्वर फल जरूर देगा , ईहां भूखे मरने से तो भलो है । ना ईहां काम है , ना कोई मदद करने वाला , उपर से मकान का किराया भी सिर पे पड़े जा रहा है , कहां से लाएं , सहर की मंहगाई हो अलग , ऊंहां अपनी एक झोंपड़ी तो है , चारबंधु भी हैं , जब सब ठीक हो जाएगा इहां बापस आ जाएंगे , अब जल्दी करो देर मती करो पलायन में ।
मां बापु ठीक बोले है , बापु मैं भी मेहनत करूंगा आप के साथ , फिर थोड़े दिनों में यहां वापस आ जाएंगे , चलो मां पिलन करते हैं ।
पिलन नहीं बबुआ पलायन , हां इश्वर करें जल्दी ही सब ठीक हो जाएं फिर से हम यहां आएंगे और राजु को स्कूल भी भेजना है ।
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