#प्यारा वो बचपन का लम्हा...

#काश वो लम्हा मैं जी पाती....,
काश वो लम्हा मैं जी पाती,
फिर वो बचपन को जी पाती,
पिता की उंगली पकड़,
बेफिक्र हो, घूम आती थी,
माँ की गोदी में छुप,
कई दुश्मनों से बच जाती थी,
अक्सर स्कूल जाने के समय,
उठ आये पेट दर्द का बहाना,
कई सदियों से, बचपन का फ़साना,
मार - पीट कर निसंकोच,
लौट आते घर की ओर,
नहीं रखते मन में बैर,
काश वो लम्हा फिर जी पाती,
माँ - बाबा का मनुहार का लम्हा,
वो हर पल नखरों को झेलते,
कोई शिकन नहीं आती माथे पे,
लाड़ जताने के नये अंदाज,
लौटाती होठों की मुस्कान,
किसी रियासत की राजकुमारी सा,
कम नहीं समझता कोई बच्चा,
भीगी आँखों के कोरों को,
पोंछ, अब हमे मुस्कुराना आ गया,
बचपन को, माँ की तरह,
बहलाना आ गया,
अब तक मैं बच्ची थी,
माँ बन मैं बड़ी हो गई,
जाने - पहचानें रास्ते पर,
एक बार फिर बचपन दौड़ गया,
कुछ खो कर, मैं कुछ पा, ली,
एक नये सफर की ओर,
जिंदगी मुड़ गई!!
- - संगीता त्रिपाठी
#जनवरी - कविताएँ
What's Your Reaction?






