रंग में भंग शराब के संग
दो दिन पहले से ही संजना होली की तैयारी में जुटी हुई थी। गुझिया और नमकीन डब्बा भर भर कर बनाया था। बस अब दही-बड़े बनाने बाकी थे। बच्चे बड़े उत्साह से मिष्ठान का आनंद ले रहे थे। बच्चों की खुशी देखते बन रही थी वे कभी पिचकारी तो कभी रंगों को संभाल संभाल कर रख रहे थे।
संजना अपने सारे काम जल्दी जल्दी निपटा रही थी क्योंकि उसे भी अपनी सहेलियों के साथ मोहल्ले में होली खेलने जाना था। संजना काम निपटा कर घर से निकल ही रही थी कि मोहल्ले के कुछ लड़के शराब पीकर हुड़दंग मचा रहे थे।
वे लड़के कभी होली के गीत गा रहे थे तो कभी रास्ते में आने जाने वाली महिलाओं को छेड़ रहे थे। उन लड़कों को देख संजना पर चढ़ा होली का खुमार वहीं उतर गया था।
बच्चे और पति पहले ही अपने अपने दोस्तों संग होली खेलने जा चुके थे। बेचारी संजना अकेली रह गई थी घर में , वो बार-बार अपने पति को फोन कर रही थी लेकिन शायद होली की शोर में फोन की रिंग की आवाज सुनाई नहीं दे रही थी।
संजना के पति को भी शाय़द संजना की चिंता नहीं थी ,तभी तो उन्होंने संजना को एक बार भी कॉल नहीं किया था
घर के बाहर लड़कों का शोर शराबा अभी भी जारी था।परोसी भी चुप थे क्योंकि सब यही सोच रहे थे कि इन्होंने पी रखी है कौन इनसे बहस कर के अपने त्योहार को ख़राब करे...
दो घंटे से ज्यादा हो गया था , मोहल्ले के लड़के अभी भी शराब के नशे में धुत थे। संजना ने अब होली ना खेलने का फैसला लिया और उदास होकर बैठ गई।
दोस्तों ये केवल संजना के साथ बीती घटना नहीं है। त्योहार में खुशियां मनाने के बहाने शराब पीकर दूसरों को परेशान करना कहां की समझदारी है। आज भी शराब से नशे में धुत लोग होली के नाम पर शराब पीकर गली मोहल्ले में हुड़दंग मचाते हैं और रास्ते मे आने जाने वाली औरतों को औरतों को छेड़ते हैं।
ऐसे मनचलों के कारण महिलाएं होली वाले दिन घर से निकलने से डरती है। इसलिए त्योहार जरूर मनाइए मगर दूसरों को अपनी हरकतों से परेशान मत करिए।
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