रथ मेरा तो सारथी भी मैं

हर किसी के जीवन में कुछ वाकये ऐसे होते है, जिन्हे वो हमेशा के लिये भुला देना चाहता है, परंतु वो वाकये मन-मस्तिष्क पर ऐसी छाप छोड़ चुके होते है कि भुलाना असंभव हो जाता है। ऐसा ही एक वाकया आप सबके साथ सांझा करना चाहूंगी।
सबसे पहले तो मैं इस मंच का धन्यवाद करना चाहूंगी जिन्होने यह अवसर दिया कि आपबीती आप सबको बता सकूं।
मेरी कहानी लगभग हर उस औरत से मिलती होगी, जो बेटियो की माएं है।
तो सत्रह साल पहले मेरा ससुराल में आगमन हुआ। बडी़ आँखो में बडे़ सपने लेकर। जितने अधिक सपने संजोये थे उतनी ही तीव्रता के साथ वो टूटे भी। मैं बहुत ही आजा़द ख्यालो की महिला हूँ, तो कुछ चीजे़ मुझसे हजम नही हो पाती थी। कुछ उदाहरण बताना चाहूंगी। शादी के बाद की पढा़ई करने का खर्च मायके वालो को उठाना पडे़गा। दहेज को लेकर बहुत ताने दिये जाते थे। बार-बार मुझे जताया जाता कि मैं उनके बेटे के लायक नही हूँ, क्योकि मैं मोटी हूँ। और भी बहुत ऐसे उदाहरण है। लेकिन मैने कभी कुछ नही बोला। उसका कारण मेरे माँ-बाप और मेरे पति थे। सदैव उनकी ओर आशा से देखती कि शायद वो लोग कुछ कहेंगे। परंतु माँ-बाप ने समाज के डर से और पति ने घर में क्लेश के डर से कभी कुछ न कहा।
ऐसे ही साल बीतते गये। मैं एक बेटी की माँ बनी और फिर कुछ सालो बाद फिर से गर्भवती हुई। आप लोग समझ ही सकते हो कि पहले से ही एक बेटी की माँ पर बेटा पैदा करने का कितना दबाब होगा। ऐसा ही मेरे साथ हुआ। कभी नारियल का बीज, कभी लड्डू गोपाल के पैरो पर चढा़ हुआ दूध और भी पता नही कितने टोटके। और मेरा इन सब में बिल्कुल विश्वास नही था। मजबूरी में फिर भी करना पडा़।
ये सब तो मैं सह गयी, लेकिन हद तब हुई जब मेरे भ्रूण की लिंग जाँच के लिये बोला गया। पति ने मना किया, लेकिन बात न बनी। मायके वालो से दबाब डलवाया गया। लगभग चार महीने की गर्भवती थी मैं, जब मुझसे सीधे बोला गया कि मैं जाँच करवाऊं। अब मैने सोचा कि जिंदगी मेरी है, तो मैं किसी और से आशा क्यो करती हूँ। ये जीवन रूपी रथ मेरा है, तो इसकी सारथी अब मैं ही बनूंगी। और अब मैं खडी़ थी सबके खिलाफ। मैं अड़ चुकी थी कि कोई जांच नही करवाऊंगी मैं और कुछ महीनो बाद मैने अपनी दूसरी बेटी को जन्म दिया। बेटी के जन्म के बाद भी बहुत मातम मना ससुराल में। लेकिन अब मुझे कुछ फर्क नही पड़ता था।
(आप सब मेरे पति के बारे में सोच रहे होंगे, तो वो हम माँ-बेटियो को बहुत ज्यादा प्यार करते है, लेकिन हाँ अब भी माँ के सामने कुछ नही बोलते। क्योकि अब मैं ही उनको बोलने का कुछ मौका नही देती।)
दोस्तो जब से स्वयं सारथी बनी हूँ बहुत खुश हूँ। बस थोडा़ सा अफसोस है, पहले क्यो नही बनी।
तो बस ये थी मेरी कहानी, जहाँ मैं अपने लिये भी और बेटी के लिये नायिका बनी।
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