रिवायत- ए -जिंदगी

रिवायत- ए -जिंदगी

#पोएट्रीचैलेंज #Thursdaypoetry #जिंदगी एक शतरंज


जिन्दगी को खुलकर जीने के लिए,

जिंदादिली से जीना पड़ता है।

भीड़ भरी इस दुनिया में रोज सुबह उठकर,

खुद को तलाशना पड़ता है।


कुछ गलतियाँ करनी पड़ती हैं,

जिनका मलाल कर सकें।

कुछ ख्वाहिशें रखनी पड़ती हैं जिंदा अपने अन्दर,

जिन्हें पूरा करने के लिए मन उड़ान भर सके।


गढ़ने पढ़ते हैं कुछ प्रेम के किस्से,

जिससे कहानियाँ आ सकें कुछ अपने हिस्से।

अनुभव करना पड़ता है कुछ खट्टे पलों का,

जिससे लुत्फ लिया जा सके मीठे पलों का।


कभी मैं बनना पड़ता है तो कभी हम बनना है पड़ता,

क्योंकि जिंदगी का हर लम्हा है तेजी से बदलता।

कभी सहना पड़ता है, कभी कहना पड़ता है,

रिश्ते निभाने के लिए चुप भी रहना पड़ता है।


कभी फूलों की बहार है तो कभी शब्दों की मार,

हर रस्म निभाने की खातिर करना पड़ता है खुद को तैयार।


कभी अपनों के साथ का सुकून है मिलता,

कभी अपनी जंग अकेले ही लड़नी होती है।

जो भी हो यहाँ जिन्दगी की होली तो,

सभी रंगों से खेलनी पड़ती है।


कभी शराफत का तो कभी बदमाशियों का

नकाब ओढ़ना पड़ता है,

नये रिश्ते जोड़ने के लिए कभी पुराने रिश्तों को तोड़ना पड़ता है।

जिया नहीं, काटा जाता है जीवन को रहकर चुपचाप,

क्योंकि जीवन जीने के लिए बिंदास,

जिन्दगी से करने पड़ते हैं दो-दो हाथ।

✍शिल्पी गोयल (स्वरचित)


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