स-श-ष हमारे नाम

गाथा है तीन बहनों की
एक जैसी वाणी उनकी
जब वो मिलीं अंग्रेजी से एक दिन
अंग्रेजी ने पूछी ख़ासियत उनकी
हम हैं हिन्दी की तीन पुत्री
मैं "स",ये "श"और वो "ष",सुकुमारी
ये तिकड़ी तुम्हारी,है बड़ी प्यारी
पर तुम्हें नहीं लगता कि पहचान खो गई है तुम्हारी
बिलकुल नहीं!कही "ष" ने इस बारी
हर बोली के "स" में मिलेंगीं हम तीन
"षोडश" से अधिक रूप हमारे,
सरलता से हो जाते वर्णों संग लीन
संस्कृति के संस्कृत से सुशोभित
करते हम वाक्यांशों को सुसज्जित
बदलते परिवेश में ढल जाने का है हमें वरदान,
जननी हमारी हिन्दी पर है हमें अभिमान।
सुषमा त्रिपाठी
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