***संकल्प***

हे पुरुष!! सोच बस एक बार जरा,
और समझ कर सबको ये बता,
जो ना होगी मां की लोरी,
जो ना होगी ममता की छांव,
और जो ना होगी,
कोई कन्यादान जैसे रस्मो रिवाज,
तो फिर वो घर-आंगन हो जाएगा सूना-सूना सा,
नर-नारी का ये संसार रचा है इस सृष्टि ने,
फिर क्यों अजन्मी बेटी को,
नष्ट करने के लिए उतावला है तू,
भाई से बहन को ना छीन,
क्योंकि इसके बिना रक्षाबंधन अधूरा है,
और हर रिश्ता हो जाएगा समाप्त,
जो इनसे जुड़ा है,
मत मार्ग बना ऐसी,
जो कोई मिटा ना पाये,
एक व्यक्ति जो करेगा ऐसा,
पीछे हर कोई उसके जाये,
खुद करके संकल्प दूसरों को भी दे शिक्षा,
बेटी हर घर का है गहना,
ना इन्हे उजाड़ो पतझड़ की तरह,
मौका दो फलने का,
तो बन जायेंगी उपवन,
और औरत भी ले सबक,
कि अपनी स्त्रीजाति को करना है सुरक्षित,
हर बेटी को देना है जीवन,
जीवन उसका है बड़ा अनमोल,
मां के गर्भ में पलने दो कन्याभ्रूण को,
क्योंकि बेटी के बिना हर घर अधूरा है,
हर परिवार अधूरा है और ये संसार अधूरा है!!
***नीतू श्रीवास्तव***(उत्तरप्रदेश)
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