साँवली सलोनी #मै और मेरी स्कीन

भारत हमारा प्यारा देश है ।यहां की जलवायु ऐसी है कि इसका प्रभाव हमारी संस्कृति में दृष्टिगत होता है । हमारे यहां अधिकतर लोगों का रंग साँवला ही होता है ।वो कहते है ना "साँवली सूरत तेरी ,सबके मन को भाये ,बिजलियां गिरे जिधर शक्ल घुमायें। "
मेरी स्कीन कहें या त्वचा का रंग साँवला ही है ।"कोई कहता मुझे ब्लैक ब्यूटी ,कोई कहता सुन्दर नाक नक्श वाली। "
पर अपनी स्कीन की कहानी भी अजीब दास्ताँ बन जीवन में आई ।समाज के मापदंड पर मेरी स्कीन कहाँ खल्क उतरने वाली थी। लोगों को तो गौरवर्ण ज्यादा अजीज था। साँवली लड़की है कह लोग रिजेक्ट कर देते थे । वो कहते सबसे पहले बाहरी आवरण पर ही नजर पड़ती है ।अंदर के आवरण को तो बस पारखी नज़र वाले ही पहचान पाते है ।
जब कोई कहता मुझे साँवली तो माँ लग जाती थी उबटन बनाने में। कभी मसूर की दाल का उबटन ,कभी दही बेसन का उबटन। और डाँट अलग पड़ती थी ,बस सारे दिन घूमती रह धूप मे,मटरगश्ती करती रही। अरे ,कभी तो अपनी स्कीन का ध्यान रखाकर। मुझे याद है अभी भी माँ बाथरूम में उबटन बना कर रख देती थी।,और खड़ी रहती जब तक मैं चेहरे पर लगा न लूँ।
मै परेशाँ हो जाती कभी कभी पर माँ के दिल की पीड़ा माँ ही जानें। माँ प्यार से पास बिठाकर बोलती, देख थोड़े दिन लगा ले ,तेरी शादी हो जाये उसके बाद भले ही मत लगाना।
मै भी मौन स्वीकृति दे देती। पर समाज के बाहर की दुनिया के लोग तो मुझे काफी पसंद करते थे ।क्यों कि.... वो मुझे अच्छी तरह से जानते थे ।
खैर, समय सभी का आता है ।जब योग संयोग बनते है ,तब आपका वर्ण सब बातें गौण हो जाती है ।आपके गुणों को पहचानने वाला पारकी जब मिल जाता है। हमें भी मिल ही गया पारखी।
अब एक मजेदार बात जो लोग मना करते थे मेरी स्कीन को देखकर अब वो सोशल मीडिया पर जब हमारा दीदार करते हैं तो पीछे ही पड़ जाते है ।पर....अब हम उनको तवज्जों क्यों दे।
मुझे तो अपने आप पर गर्व हैं, हाँ हूँ मैं साँवली सलोनी। कान्हा जी तो सांवरी सूरत के थे ।
"मै और मेरी स्कीन की यही है कहानी,
मैं और मेरी दुनिया यही है जिन्दगानी। ।
डा राजमती पोखरना सुराना भीलवाड़ा राजस्थान
#7 दिन#7ब्लोग
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