सावन के उड़ते बादलों...#आज़ादी #Thursdaypoetry

सावन के उड़ते बादलों मेरा कहा मान लेना
अबकी बार अपने साथ मुझे भी उड़ा ले चलना
ले जाना मुझे उन पहाड़ों पर
जहाँ मेरा यार खड़ा पहरा दे रहा है
सीमाओं पर खड़ा देश को सलामी दे रहा है
चली जाऊं उसके पास
अपनी उष्म सांसों को उसके कानों में डाल दूँ
सर्द हवाओं में अपने गर्म स्पर्श से उसके तन की अकड़न निकाल दूँ
सावन के उड़ते बादलों मेरा कहा मान लेना
ले जाना अबकी बार उन सरहदों पर
जहाँ मेरा यार डटा है दुश्मनों के सामने
जान हथेली पर रख खड़ा है फ़तह का परचम थामने
थोड़ा मैं उसे जी भर निहार लूँ
आँखों में उसे भर उसकी बलाएँ उतार लूँ
सावन के उड़ते बादलों मेरा कहा मान लेना
ले जाना अबकी बार मुझे उन खेमों में
जहाँ मेरा यार दो पल सुकूँ पा रहा है
जहाँ देश के लिए मेहनत की रोटी खा रहा है
दो रोटियाँ उसके लिए वहाँ मैं भी सेक लूँ
उसके ज़ख्मों को अपने भिगे आँचल से पोछ लूँ
सावन के उड़ते बादलों अबकी बार मेरा कहा मान लेना
दीपाली सनोटीया
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