तोड़ डाला.... रूढ़िवादी जंजीर

एक डैम प्रोजेक्ट में मेरे बड़े भाई की बेटी, हरिका की नियुक्ति असिस्टेंट इंजीनियर के तौर पर हुई थी। उस डैम प्रोजेक्ट में नियुक्त होने वाली पहली महिला थी।
किसी भी काम को करने के लिए हरिका ने अपने लड़की होने का फायदा कभी नहीं उठाया। लोकल टूर भी जाती थी पर जैसा कि पुरुष प्रधान समाज आसानी से एक स्त्री को अपना बॉस मानने के लिए तैयार नहीं होता ।कुछ जानबूझकर रोड़ा डालने की कोशिश करते पर हरिका भी हार मानने वालों में से न थी।
इंजीनियरों का एक क्लब भी था जो बीच बीच में फैमिली गेट टुगेदर करता था ताकि परिवार के सदस्य भी एक दूसरे से घुले मिले।
क्लब के सेक्रेटरी और जॉइंट सेक्रेटरी के लिए चुनाव होना था। हरिका ने खुद का नाम सेक्रेटरी के लिए पेश किया। कुछ ने रोष भरे अंदाज में सिरे से खारिज कर दिया हरिका के नाम को।" पुरुषों के बीच अकेली महिला का क्या काम? किसी ने कहा सेक्रेटरी पद कितना दायित्व भरा है अंदाजा भी है? क्लब के सारे फंक्शन की जिम्मेदारी का दारोमदार सेक्रेटरी के कंधों पर ही होती है, क्या आप से पूछ कर हम काम करेंगे या आपके ऑर्डर का हम पालन करेंगे" ?गुस्से से एक और इंजीनियर ने कहा।
हरिका ने अपना पक्ष रखते कहा," जब मैं आप लोगों की तरह ही हर काम को पूर्ण दायित्व के साथ निभा रही हूं तो भेदभाव क्यों? ऐसा क्यों लगता है आप लोगों को सेक्रेटरी जैसे पद के लिए मैं योग्य नहीं हूं"। तर्क वितर्क और वाद विवाद के बीच वोटिंग करने का निर्णय लिया गया जो इससे पहले नहीं होता था।
हरिका ने भी निश्चय कर लिया कि उसे इस प्रकार की रूढ़िवादी विचारों की जंजीर को तोड़ना होगा तो ही आने वाले महिलाओं के लिए रास्ते खुलेंगे।
कुछ ऐसे जूनियर इंजीनियर भी थे जिनकी अपने सीनियर से पटती ना थी। वे एक परिवर्तन चाहते थे। कुछ का सुझाव था "सिर्फ स्त्री है" कहकर मना करने के बजाय एक मौका अवश्य दिया जाना चाहिए।
एक स्त्री ही है जो घर बाहर सभी जिम्मेदारी बखूबी निभाती है ।हो सकता है हरिका मैडम सालों से चली आ रही लीक से हटकर कुछ कर दिखाए ।नाना लोग नान मत।
भैया भाभी भी हरिका को अपना विचार त्यागने के लिए कहने लगे ,पर हरिका अपने साथ-साथ अन्य महिलाओं के लिए भी आगे बढ़ने के द्वार खोलना चाहती थी ।
उसे लगा सालों से स्त्री पुरुष के बीच होने वाले भेदभाव में अभी भी बहुत परिवर्तन नहीं आया है।
अंततः जीत हरिका की हुई ।उसे इस बात की खुशी थी कि उसने पुरुषों के वर्चस्व वाले अंचल में अपना मुकाम हासिल किया।
अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के दिन ही उसने लेडीज क्लब की स्थापना कर विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रमों, प्रतियोगिताओं का आयोजन कर महिलाओं को विभिन्न क्षेत्रों में आगे बढ़ने का प्रोत्साहन देकर पुरुषों के बीच अपना लोहा मनवा लिया।
लग्न, दृढ़ संकल्प ,इच्छाशक्ति हो तो मनुष्य कांटों में भी अपना रास्ता बना ही लेता है ।हरिका अनेक के लिए एक उदाहरण बनी।
धन्यवाद?
#Break The Bias#
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