देखो वो स्त्री है...#जनवरीकविताएं

देखो वो स्त्री है उसे पसंद है खुद को समेटना
रह-रह कर खुद ही के सपनों को नचोटना
हर बात से डरना जो उसे उसका स्वत्व दिलाती है
देखो वो घूँघटों में छुपकर खुद को सुरक्षित पाती है।
देखो वो स्त्री है उसे पसंद है खुद ही का दमन
सोचती है थोड़ा जी लेगी तो संस्कार हो जाएंगें गुम
वो चुनौतियों से घबराती है तभी तो चुप रह कर
सब जान कर भी पाखंडी परम्पराओं को निभाती है।
देखो वो स्त्री है उसे पसंद है स्त्री की ही अवहेलना
वो नहीं दे पाती साथ उस निर्भय स्त्री का
जो लाख उलाहना के बाद भी उसी के लिए आवाज़ उठाती है
जो करती है साहस नया अपनाने का, उसी के लिए नया जहान बनाने का।
देखो वो स्त्री है उसे पसंद है स्त्री की ही उपेक्षा
शायद आदी है कायरता की, जिसे वो मर्यादा की चादर ओढ़ाती है
अपनी बेबसी को सिर का ताज, लोकलाज बताती है
जुटा नहीं पाती थोड़ा सा साहस, निर्भय स्त्री को निर्लज्ज बताती है।
देखो वो स्त्री है....वो स्त्री ही है।
#मेरी पसंद (स्वरचित)
दीपाली सनोटीया
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