वो बचपन वाली सर्दी #सर्दियों की गर्माहट

ठंड का दिन शुरू से ही मुझे पसंद नही ,क्योंकि ठंड में मुझे तकलीफ बहुत ज्यादा होती है।मेरी बीमारी ठंड के मौसम में मुझे बहुत परेशान करता है।ठंड में सारे जोड़ों का दर्द शुरू हो जाता तो ठंड को लेकर मेरे पास कुछ सुनहरी यादें नही है।
यादें है तो कड़वी,दर्द भरी ,कष्टपूर्ण।मगर इंसान की परीक्षा तो कठिनाइयों में ही होती है।
इंसान कष्टपूर्ण समय में अगर परीक्षाएं देकर उबर आता है तो वही योद्धा माना जाता तो एक योद्धा के रूप में हर वर्ष ठंड से लड़ती हूँ।
मगर ठंड के दिनों की कुछ खट्टी मीठी यादें भी संग
में जुड़ी हुई है जिसमें प्यार है अपनापन है परवाह है फिक्र है।
बात तब की है जब मैं छठवीं कक्षा में पढ़ती थी।चूँकि मैं छात्रावास में रहती थी तो हमें वर्ष में दो बार ही घर जाने का मौका मिलता था ।एक जाड़े में एक महीने के लिए और गर्मियों में दो महीनों के लिए ।जाड़े की छुट्टियों के बाद जब हम वापिस अपने छात्रावास आते तो गुनगुनाती गुलाबी ठंड पड़ती ही रहती थी।हमारी कक्षाएं धूप में चलती थी जो बहुत ही आनंददायक लगता था।
सबसे आनंद आता था रविवार के दिन जब हम नरम मुलायम हरे घास पर मैदान में चादर बिछाकर टोलियों में बैठते।गप्पों का दौर चलता,हँसी मजाक होता,घर से लाये गजक,तिल के लड्डू,मूँगफली जब सब मिलकर खाते तो उसका स्वाद दूना हो जाता।
उसके बाद उसी नरम घास पर बैठकर हम सब अपनी पढ़ाई भी करते,एक दूसरे से जरूरी विषयों पर विचार विमर्श होता।
प्रकृति का भरपूर आनंद,सूरज की किरणों से मिलने वाली ऊर्जा,दोस्तों का साथ सब कुछ चिरस्मरणीय है।
आज छत पर अकेले बैठकर वह आनंद कहाँ मिलता है जो उस समय मिलता था।शारीरिक स्वास्थ्य के साथ मानसिक और बौद्धिक स्वास्थ्य लाभ हो जाता था।
काश कोई बीते दिन लौटा दे।जहाँ सर्दियों के तकलीफ के बावजूद आनंद था ,ख़ुशियाँ थी। जब सर्दियां भी अपनापन लेकर आती थी।
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