विवाह में” भात ” की रस्म

घर में शादी यानी चारों ओर चहल-पहल और गहमा-गहमी का माहौल शादी चाहे लड़की की हो या लड़के की पंजाब में हो या बंगाल में विवाह समारोह की अनेकों रस्में और सारे रिश्तेदारों की भागीदारी …कुल मिलाकर यही बातें भारतीय शादियों को खास बनाती है।
विवाह समारोह में वर या वधु के ननिहाल पक्ष की खासतौर से मामा की महत्वपूर्ण भूमिका होती है उत्तर भारत के प्राय सभी प्रांतों में बहन के बच्चों के विवाह के अवसर पर भात देने की रस्म की जाती है जिसमें भाई की ओर से बहन और उसकी ससुराल के लोगों सहित कपड़े फल गहने आदि दिए जाते हैं
विवाह की तिथि तय होते ही वर या वधू की मां कुछ रिश्तेदारों के साथ अपने भाई के यहां जाकर विवाह में सम्मिलित होने का आमंत्रण देते हैं भाई इस आमंत्रण को स्वीकार करता है। सबसे पहले कृष्ण जी ने नरसी जी की बेटी का भात दिया था तभी से यह प्रथा चली आ रही है
इस अवसर पर बहन पक्ष द्वारा गीत भी गाए जाते हैं जैसे-” सुन भैया रघुवीर भात सवेरा लाइयो ” इन गीतों को भात के गीत कहते हैं…. इन गीतों में भाई-बहन के स्नेह संबंधों की अभिव्यक्ति देखने को मिलती है
इन रस्मो पीछे मामा द्वारा अपनी बहन की संतान का ख्याल रखने की भावना छिपी होती थी साथ ही उनका ढेर सारा आशीर्वाद भी समाया रहता था।परंतु वर्तमान में इस प्रथा ने एक जबरदस्ती और मजबूरी का रूप ले लिया है, भाई चाहे कितना भी आर्थिक रूप से कमजोर हो परंतु उसे यह सब इंतजाम करना पड़ता है जो गलत है ऐसा न कर पाने की स्थिति में समाज के सामने शर्मिंदा होना पड़ता है।
कोई भी प्रथा तब तक अच्छी लगती है जब तक वह बोझ ना बन जाए अतः इस प्रथा को भाई बहन के प्यार के प्रतीक के रूप में निभाना चाहिए
अनु गुप्ता
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