वो मंज़र- Story by Archana Saxena

वो मंज़र- Story by Archana Saxena

आज फिर वही समां वही मंजर था। प्रायः सभीको सुहानी लगने वाली बारिश रीति को अब डरावनी लगती थी। एक समय था जब बारिश का मौसम उसका मनपसंद मौसम हुआ करता था। बचपन से पानी में कागज की नाव तैराती आई रीति किशोरावस्था में आते आते बारिश के मौसम में बावली ही हो जाती थी। माँ के लाख मना करने पर भी पानी में धमाचौकड़ी मचाने निकल पड़ती। बारिश में साथ भीगने वाली सहेलियाँ भी धीरे धीरे कम हो कर समाप्त हो चुकी थीं। किशोरावस्था में घरवालों की पाबंदियाँ जो लग गई थीं उनपर। दूसरी ओर रीति का माँ के सिवा और कोई नहीं था रोकने टोकने वाला। सीधी सादी माँ आवाज़ लगाती रह जाती और रीति उड़नछू हो जाती।

ऐसे ही एक शाम थी जब बारिश में भीगती रीति को पीछे से किसी ने अपनी बलिष्ठ भुजाओं में जकड़ा और पहले से स्टार्ट कार में डालकर चल दिया। कार में एक दरिंदा और था, उसने तुरंत कार फुल स्पीड पर दौड़ा दी थी। उस दिन सुनसान शहर की सड़कें मूक गवाह बनी उसकी बरबादी का।

तन और मन दोनों को बुरी तरह कुचलने के बाद वह रीति को धमकाते हुए वहीं छोड़ गए थे। तब तक मूसलाधार बारिश मद्धम पड़ चुकी थी। अब तो आसमान शायद रीति के साथ हुए अन्याय पर हौले हौले आँसू बहा रहा था।
किसी तरह स्वयं को समेटे घर पहुँची। माँ बेचैनी से भरी दरवाजे पर ही खड़ी थीं रीति को बदहवास हालत में देखकर उनका दिल ज़ोर ज़ोर से धड़क उठा।

"कहाँ थी इत्ती देर से लाड़ो? और ये क्या हालत बनाई है, क्या हुआ है तुझे?"
रीति तो अपनेआप में थी ही नहीं, जवाब क्या देती, सिर्फ टूटा फूटा शरीर बचा था जिसे समेट कर घर तक चली आई थी। दिलदिमाग तो उन वहशियों ने रौंद डाला था।

बारिश हल्की होने की वजह से इक्का दुक्का पड़ोसी घर के बाहर थे और उनकी निगाहें रीति का मुआयना करके वस्तुस्थिति तक पहुँचने का प्रयास कर रही थीं।
बगल वाली सुमित्रा ताई बोलीं
"आज तो तेरी लाड़ो कुछ कांड करके आई दीखै रमिया"
नज़रों में सहानुभूति नहीं उपहास था।

कुछ ही देर में बात पूरे मोहल्ले तक पहुँच चुकी थी। घर के सामने भीड़ लग चुकी थी। सबकी नज़रों में दोषी रीति और रमिया ही थीं।
"कोई मर्द होता घर में तो ये नौबत नहीं आती।"
शामू चाचा मूँछों पर ताव देकर बोले।
"अरे मर्द नहीं था घर में तब तो और भी ध्यान देना चाहिए था रमिया को। इत्ती छूट कौन देता है लड़की जात को? जैसी माँ तैसी बेटी।"
सलीम चाचा नाकभौं सिकोड़ते हुए बोले।

"अरे ये रीति बिल्कुल ना सुनती रमिया की। मैं तो सब जानूँ हूँ। ये कोई उमर है इत्ता बचपना करने की? रमिया की जगह मैं होती तो कूट कूट के ठीक कर देती इसे। मेरी लक्ष्मी भी तो पहले खेलती थी बारिश में। बड़े होते ही समझ गई क्या सही क्या गलत। एक रमिया की लाड़ो हैं....."

रमिया ने रीति के साथ खुद को घर में कैद कर लिया था, पर आवाजें पीछा नहीं छोड़ रही थीं।

रमिया ने चाहकर भी पुलिस में रिपोर्ट नहीं लिखवाई। कौन साथ देता उसका? फिर रीति को उन वहशियों के बारे में कोई जानकारी भी तो नहीं थी। उसपर पुलिस के अजीबोग़रीब सवाल नादान रीति कैसे झेल पाती?
इस घटना के बाद से तो रीति का घर से निकलना तक दुश्वार हो गया। एक ओर जहाँ पड़ोस की लड़कियों को रीति से बात करने की मनाही थी वहीं दूसरी ओर अब तक रीति से चाचा ताऊ संबोधन पाते आए मर्द तक उसे सहज सुलभ वस्तु समझने लगे थे। शरीर को भेदती उन निगाहों को रीति सह नहीं पाती और उसका मानसिक संतुलन दिन दिन बिगड़ रहा था। किसी के मशवरे पर पति की सीमित पेंशन में बमुश्किल रीति की काउंसलिंग कराना प्रारंभ किया लेकिन ऐसे पड़ोसियों के होते काउंसलिंग भी असर नहीं कर पा रही थी।

तंग आकर रमिया ने वो मोहल्ला ही छोड़ दिया। दो साल तक रीति पढ़ भी नहीं सकी। धीरे धीरे किसी हद तक सामान्य हुई तो पुनः पढ़ाई प्रारंभ की लेकिन पहले सी चंचलता कभी नहीं लौट सकी। पुरुषों पर अविश्वास तो उसकी रगों में घुल गया था। पढ़ाई समाप्त होने के बाद नौकरी भी लग गई और राहुल से मुलाकात हुई। राहुल किसी तरह उसका भरोसा जीतने में कामयाब रहा। जब उसने विवाह का प्रस्ताव रखा तो रीति ने कुछ नहीं छुपाया। संवेदनशील राहुल ने उसकी मनोदशा समझी और उसका फैसला और भी मज़बूत हो गया।

सबकुछ सामान्य होता जा रहा था परन्तु जब भी मूसलाधार बारिश होती तो रीति का अतीत उसपर हावी हो जाता।
और आज फिर \"वो बारिश\" कहर बरपा रही थी।घर में अकेली रीति का दिल ज़ोर ज़ोर से धड़क रहा था और राहुल का अब तक कहीं पता नहीं था। मूसलाधार बारिश से घर के आसपास की सभी सड़कों पर पानी भर गया था।

अचानक दरवाजे की घंटी बजी तो रीति ने दौड़कर दरवाजा खोला। सामने राहुल भीगा हुआ खड़ा था पर वह अकेला नहीं था, उसके साथ चौदह पंद्रह बरस की एक किशोरी थी जो पूरी तरह भीगी हुई थी और खुद में ही सिमटी जा रही थी। रीति ने प्रश्नवाचक दृष्टि से उसे देखा और राहुल से पूछा-
"कहाँ थे तुम? जानते हो न ऐसे मौसम में मेरी जान निकल जाती है? फिर भी देर की, और ये कौन है....?

"मुझे देर नहीं होती तो आज एक और रीति जन्म ले लेती जो ताउम्र अपने मन के घावों को भरने का प्रयास करती रहती है परंतु फिर भी ये बारिश उसके ज़ख्मों को हरा करने आ ही जाती है। तुम पर जो बीती वो मैं नहीं बदल सकता लेकिन अपनी आँखों के सामने एक और लड़की को रीति बनता नहीं देख सकता था, इसलिए वहाँ रुक गया और इसे बचा लाया। बारिश रुकते ही हम दोनों इसे इसके घर छोड़कर आएँगे।"

रीति ने गर्व से राहुल की ओर देखा। उसका मनों टनों बोझ कम हो गया था।

लेखिका :अर्चना सक्सेना

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