#world bicycle day/पड़ोस की साइकिल

बचपन की यादें हमें बच्चा बना जाती है।
कुछ ऐसी ही यादें
ताउम्र के लिए हमारे
मन में बस जाती है
ऐसी ही कुछ यादें हैं मेरी साइकिल से जुड़ी
वो साइकिल जो मेरी अपनी नहीं थी
फिर भी उसको चलाने की ललक से
मै उस साइकिल की ओर खींची चली जाती
पड़ोस की साइकिल को मैंने अपना मान
उसकी सीट और पैंडल पर
अपनी पकड़ बनाई थी
बढ़ती धड़कन के साथ मैंने
पहली बार दो तीन पैंडल घुमाई थी।
आंखों में चमक ,चेहरे पर मुस्कान
साइकिल की पहली सफर से मुझे
मिली थी ये खुशी अपार
सहेलियों की एक आवाज़ पर
मैं नौ दो ग्यारह हो जाती थी
मुझे घर में ना पाकर मम्मी
भी पी टी उषा बन जाती थी।
डांट सुनी और पिटाई भी खाई
पर साइकिल सिखने की ललक
को दिल से कम ना कर पाई।
देख हमारी ललक को
मम्मी ने पापा से कह कर
नई साइकिल मंगवाई थी
फिर क्या था नई साइकिल
गली मोहल्ले में घूम घूम कर
मैंने अपनी खुशी जताई थी।
# world bicycle day
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