ये लड़कियांँ..........

पर ख़्वाबों से नींदों को बेज़ार कर बैठी हैं।
ये लड़कियांँ देखो आशिक़ी के इस्तक़बाल में,
हाल ख़ुद का किस क़दर बेहाल कर बैठी हैं।
ढलकने नहीं देती आँसुओं को रुख़सार पर,
नकाब खुशियों का चेहरे पर लगा कर बैठी हैं।
ये लड़कियांँ देखो राज़ बेशुमार और गहरे,
दिल के दीवारों में दरार बना कर बैठी हैं।
ज़रा सी आहट से धड़कता है इनका दिल,
पर वल्द के ख़ातिर मज़बूत किरदार बन बैठी हैं।
ये लड़कियांँ देखो वक़्त के बहाव के साथ,
किस तरह एक नायाब मिसाल बन बैठी हैं।
नन्ही कली सी हैं ये नाज़ुक और मासूम,
पर कांटों से ख़ुद का श्रृंगार कर बैठी हैं।
ये लड़कियांँ देखो वतन के मोहब्बत में,
जान किस क़दर निसार कर बैठी हैं।
जिस ज़माने में अक्सर ये होती थी रुस्वा,
आज उस ज़माने का मशाल बन बैठी हैं,
ये लड़कियांँ देखो मशक़्क़त के दम पर,
अपने ख़ानदान का "इक़बाल" बन बैठी हैं।
सच! ये लड़कियांँ नहीं हैं किसी से कम,
इस बात का आख़िर इज़हार कर बैठी हैं।
सच! ये लड़कियांँ नहीं हैं किसी से कम,
इस बात का आख़िर इज़हार कर बैठी हैं।
#thursdaypoetry
#पोएट्रीचैलेंज
What's Your Reaction?






